कवि का मन
इधर उधर भटकता फिरता है
सोचता है नहीं सोच रहा है, लेकिन सोचता है
सोचता है तभी तो ज़िंदा है
देख पाता है दृश्य और अदृश्य
कवि शब्दों का मायाजाल बिछाकर
कुछ सोचों को शब्दों में
कैद करने की कोशिश करता है
कुछ पकड़ में आते हैं
कुछ बिखर जाते हैं
सोच और शब्द को पकड़ने की कोशिश
का नाम कविता है
पकड़ो सोच और शब्द को
माया की परिधि से बाहर जाने से पहले
नहीं कोई मूल्य समय के पास
इंतज़ार का