श्रीराम के अनन्य भक्त हमारे दादा
राम- नाम लेने के लिए उन्हें
राम नवमी का इंतज़ार नहीं करना पड़ता था
काम से ज्यादा दादा की ध्यान धारणा
टिका करती थी रामायण मंडली पर
“मोरे तुम प्रभु गुरु- पितु- माता”
मंडली के सदस्यों की अभिवादन की भाषा थी
हर इतवार के दिन दादा के घर जाना प्रायः निश्चित था मेरा
पहले इतवार बालकाण्ड, फिर अयोध्या, फिर अरण्य
फिर किष्किन्धा, फिर सुन्दर , छठे में लंका, फिर उत्तर कांड
और फिर अखंड रामायण की कथा
आइये मंडली के सदस्यों से आपका परिचय करवा दूं
पुत्तन चाचा का गला मानो मधु मक्खियों का छत्ता
ढोलक एक्सपर्ट शुक्ल जी, हारमोनियम में पांडे जी
मंडली की एकमात्र महिला सदस्य यशोदा बहन
राधेश्याम हलवाई प्रसाद वितरण में सदैव तत्पर
भक्तों को पान खिलाने का जुम्मा रघु भैया का
आइये थोड़ा बहुत झांक लेते हैं दादा के परिवार की ओर
दादा के दादा बड़े दादा का श्रीराम के प्रति उत्साह कुछ कम था
पाठ के अतिरिक्त कुछ भी करवा लीजिये बड़े दादा से
लेकिन, बड़े दादा बिना साप्ताहिक बृहत् आयोजन असंभव था
भाभी और बड़ी भाभी की इतवार राम भक्तों को चाय पिलाते निकल जाती
मैं दादा का राम-भक्त हनुमान
इधर-उधर फुदकता फिरता
सर पर पहाड़ उठाये
राज्याभिषेक के समय पुत्तन चाचा का
"हमारे राम आज राजा बनेंगे"
लगता मानो राम राज्य बस आने ही वाली है
न आए राम राज्य तो क्या
इंतज़ार का मजा ही कुछ और है