हमारे कानपुर वाले आर्यनगर में
रघु भैया की पान की दूकान
मानो दैनिक जागरण का छोटा मोटा संस्करण
बोलने की ज़रुरत नहीं, सिर्फ सुनते रहो
कौन किस पार्टी से चुनाव लड़ रहा है
क्रिकेट टीम में किसको जगह मिलेगी
कौन सी फिल्म हिट होगी
शाकाहारी भोजनालयों की अवस्था दिन पर दिन बिगड़ती क्यों जा रही है
इत्यादि इत्यादि प्रसंगों पर चर्चा हर रोज़ होती थी
रघु भैया बोलते कम थे, इशारों से बाते करते थे
पान का जमाना था, आया न था गुटका और पुड़िया का जमाना
रघु भैया मुंह खोलते तो सिर्फ थूकने के लिए
देर रात तक खुलती रघु भैया की दूकान
जमघट देखने लायक होती
मोहल्ले के विशिष्ट ब्यक्तियों के विचार
मुफ्त में सुनने का हर एक को मौका था
भाईचारा भी था, झगड़ते भी खूब थे
लगेगा नहीं, रज्जन भैया और कपूर साहेब के बीच
अभी थोड़ी देर पहले हाथापाई की नौबत आ गई थी
घर जाते समय, "रघु, मेरी तरफ से कपूर साब के लिए चार पान बांध देना"
कहकर जब रज्जन भैया अपने घर की और चल देते
राम-भारत मिलन की याद दिला जाते
जय हो रघु भैय्या की पान की दूकान की
जय हो आर्यनगर की