दरी-चादरों की जगह कुर्सी-मेज़ों ने ले ली
ब्लैक बोर्ड की जगह व्हाइट बोर्ड आ गए
खेल के मैदान हैं, खेलने का समय नहीं
प्रगति के इस दौर में, सौ में नब्बे कम लगने लगे हैं
बाबू बनाने वाली शिक्षा इतना कमज़ोर तो न बनायें
सिर्फ कॉल-सेंटर काबिल रह जायें
किताबें ढूढ़ने जाया करते थे मीलों दूर
अब किताबें ढूढ़ती-फिरती हैं
प्रश्न पूंछने से कतराते हैं
वही प्रश्न पूंछते हैं, मालूम हो उत्तर जिनके
किससे प्रश्न पूंछे - जो उत्तर जानते हैं
या उनसे, जो अनभिज्ञ हैं, उत्तर से
ज़रुरत है पहचानने की, कहाँ कमी है
समझ में या समझाने में
ज़रुरत है खुली किताबों की
न्यूरॉन्स जानते हैं, क्या जानना चाहते हैं वो
हर कोई हर कुछ नहीं बन सकता है
ज़रुरत है इस समझ की
ज़रुरत है मूल्यांकन, शिक्षकों की
ज़रुरत है उन शिक्षकों की
जिनकी ज़रुरत है शिक्षा को
ज़रुरत है रोकने की, उन शिक्षकों को
जो दूर चले जा रहे हैं, शिक्षा से