पसीने से लथपथ एक दोपहर को
फिल्म देखने जा रहे थे तीन दोस्त
एक रिक्शे पर सवार होकर
ढालू रास्ते के बाद चढ़ाई आने पर
उठा न पाया वज़न तीन दोस्तों का
बेचारा रिक्शेवाला, बीच रास्ते में जा गिरा
पसीना लहू-लुहान हुआ
जेन-तेन-प्रकारेण सिनेमा हॉल पहुंचे तीन दोस्त
ए सी में बैठकर कौन याद रखता है
खून पसीने की कहानी
बेचारा रिक्शेवाला, ढो रहा होगा, कहीं
किसी और का भार
ठन्डे कमरे में, विज्ञापन भी अच्छे लगते हैं
पसीना सूख रहा था, पिक्चर शुरू हुई
थोड़ी देर बाद, अचानक दोस्तों ने देखा
शम्भू को रिक्शा चलाते, अमानुषों की तरह
उन्हें दिखा, उसका पसीना भी खून की तरह बह रहा था
समझ में आयी उन्हें दो बीघा ज़मीन गवाने की ब्यथा
शम्भू का पसीना खून बनकर न बहता
न चुकाने होते उसे, चंद रुपयों का क़र्ज़
शम्भू के पसीने ने बेचैन किया दोस्तों को
मन ही मन कहा, इसबार रिक्शे में नहीं, पैदल घर जाएंगे
फिर लगा, अगर पैदल घर जाएंगे तो शम्भू कैसे चुकाएगा
६५ रुपये का क़र्ज़
दोस्तों ने फैसला किया, इसबार एक नहीं, दो रिक्शे से घर लौटेंगे
उन्हें लगा, श्रम के उचित मूल्य में ही छुपी हुई है पसीने की सार्थकता