कोई चला गया
धूमिल शोर की तरह
बचपन साथ लेकर
कोई चला गया
'कोई' कोई नहीं
अपना कोई था
गुम हो गया
भैरों घाट के सन्नाटे में
बरसों की यादें समेटकर
कुछ यादें याद आती हैं कुछ ज्यादा ही
इतिहास के पहले पन्ने पर लिखा था
एक सहज पाठ
हमारी सम्पदा
एक जीवन
दो रोटी, एक छत, कुछ चेहरे
हमारी कहानी
एक बीज को देह मिला
उसके पर लगे
एक दिन
कार्बनिक बह गया
अकार्बनिक रह गया
देह का अंत हुआ
‘स्वयं’ अनन्त हुआ
'मैं' जीवंत हुआ