मैं नाराज़ हूँ, शिकायत है मुझे
मेरी हर अनायास बात मान लेते हो
बहस भी नम्रता से करते हो
सुनाई नहीं देता, इतना धीरे बोलते हो
क्यों इतना आश्रित होता चला जा रहा हूँ मैं तुम पर
दूर से आती आवाज़ ने पास आकर धीरे से कहा
भक्ति बाजार में बिकती नहीं, अर्जित करनी पड़ती है
तुमने की, जब तक मिल रही है, लेते रहो
हनुमान जी बिरले होते जा रहे हैं
जैसे बिरले होते जा रहे हैं रामचन्द्र जी
कुछ ही दिनो मे, दोनों पाये जाएंगे, सिर्फ छपी किताबों में