उन दिनों एक आने में दो आलू की टिकिया मिला करती थी
सिर्फ बड़े लोग मोटरगाड़ी पालने की हिम्मत कर पाते थे
उन दिनों सात लाख रूपये सात करोड़ के समान हुआ करते थे
उन दिनों रघु पानवाले की दुकान के बगल वाली गली में
राधेश्याम दूधवाले की ग्वालटोली बसा करती थी
राधेश्याम अपने गाय भैसों के साथ मौज की जिंदगी बिता रहा था
एक दिन अचानक, राधेश्याम दूधवाला लखपति बन गया
सात लाख की लॉटरी जो लगी थी उसकी
लॉटरी मिलने के कुछ ही दिनों में
राधेश्याम दूधवाला न रहा
गाय भैसों के रहने की जगह
उठी उसकी सात-मंजिला कोठी
पुराने दोस्त छूटे नए दोस्त बने
नए खर्चे बने, खर्चों का दबाव
सम्हाल न पाया राधेश्याम, बिका सात मंजिला मकान
बेघर राधेश्याम, न रहा घर का, न घाट का
शहर से दूर खुली उसकी, चाय की दूकान
दूध अब आने लगा, उसके भाई घनश्याम की दूकान से
जय हो लॉटरी मैय्या की
राधेश्याम दूधवाला, दूधवाला न रहा