कल रात, सोने से पहले, तीन गाने
पता नहीं कहाँ से उड़कर, मेरे कानों के पास पहुंचे
पहला गाना था, तलत महमूद का
प्यार पर वश तो नहीं मेरा
लेकिन फिर भी तू बता दे
तुझे प्यार करूँ या न करूँ
दूसरा मुकेश माथुर का
तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
तुम किसी और को चाहोगी तो मुश्किल होगी
तीसरा गाना आशा जी का गया हुआ था
मेरा कुछ सामन तुम्हारे पास पड़ा है
मैं सोचता रहा, यही तीन गाने क्यों मेरे कानों के पास पहुंचे
सोचता सोचता मैं सो गया
देर रात को जब मेरी नींद खुली
इन गानों ने फिर मेरा सामना किया
अचानक मुझे याद आयी, एक कवि की प्रेम कहानी
जो मैंने पढ़ी थी, कुछ दिनों पहले
इक्कीस की उम्र में इस कवि का प्रेम एक ऐसी प्रेमिका से हुआ
जो कवि की गहराइयों और ऊंचाइयों को पूरी तरह से समझती थी
कवि की शादी का प्रस्ताव उसने यह कहते ठुकरा दिया
कि मैं उम्र में तुमसे काफी बड़ी हूँ, लेकिन जानती थी
यह सिर्फ उम्र का मामला नहीं था
वो अपनी दोस्ती की सहजता को सम्हालकर रखना चाहती थी
उसे डर था कहीं प्रेम, दोस्ती के आड़े न आ जाये
उसे डर था, कहीं बंधन कवि को उसकी दुनिया से दूर न ले जाएँ
कवि के कोमल ह्रदय की ढेस पहुंची, उसे लगा उसे नया ह्रदय मिला
उसे यह भी लगा, गैर-स्वामित्व वाला प्यार (non-possessive love) और
जागरूक एकजुटता (conscious togetherness), शायद
स्वस्थ संबंधों के आवश्यक घटक होते हैं
प्रेमिका ने अपना प्रेम इस प्रकार व्यक्त किया
मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, तुम कवि बनो या चित्रकार
तुम जो भी बनो, मैं जानती हूँ, मुझे निराशा नहीं होगी
मुझे तलाश है तुम्हारी, तुम्हारे अंदर के नयेपन की
जो उभरकर सामने आनेवाली है
मैं जानती हूँ, तुम मुझे निराश नहीं करोगे
कवि ने काफी सोच-समझकर लिखा
मैं जान गया हूँ, प्यार करो लेकिन प्यार को बंधन न बनाओ
बनाओ एक दूसरे के जाम, लेकिन पियो अपने ही प्याले से
नाचो गाओ साथ मिलकर, लेकिन अकेले रहकर
ओक और सायप्रस नहीं पनपते एक दूसरे की छाया में
दूरियां एक दूसरे को क़रीब लाईं
उन तीन गानों का
इस कवि की प्रेम कहानी से क्या सम्बन्ध है
आइये साथ मिलकर सोचते हैं