चंडीगढ़ से दिल्ली लौट रहा था
रास्ते में मेरी बेटी का कॉलेज पड़ा
कितनी बार आया हूँ इस कॉलेज में, किसी न किसी बहाने
इस कॉलेज के साथ कितनी यादें सिमटी हुई है
रुका, थोड़ी देर के लिये, गेट के सामने
यादें समेट रहा था, अचानक दिखा सामने रखा वो बेंच
उसमें बैठी हुई थीं मेरी बेटी सामान तीन बेटियां
कभी हाथ इधर चला जाता तो कभी उधर
सेल्फी उतारने की कोशिश में
दूर खड़ा मैं देख रहा था, कब पहुँच गया उन तक, पता न चला
उनकी आँखों में कमी थी, उत्साह में न थी कोई कमी
काले चश्मे से आंखें ढकने की ज़रूरत न थी उनको
जब मैंने मदद के लिये पूंछा उनको, ना कर दी
कहा, आँखों ने काम करना बंद कर दिया है
फिर भी हम देख सकते हैं, कोई परेशानी नहीं
बिन प्रकाश के हम तस्वीर खींच सकते हैं
अँधेरे में भी हम देख सकते हैं
लगा सही कॉलेज में दाखिला लिया था
मेरी बेटी ने, और इन तीन बेटियों ने