उनकी आँखों में दिखता था गुलाब
दिखता था शबाब, दिखती थी कायनात
दिखती थी महकती खुशबु
आँखों में आँखे डालकर बातें होती थी
धीरे धीरे आँखों को चश्मे की ज़रूरत पड़ने लगी
गुलाब की जगह कांटे दिखने लगे
दिखने लगा आग, दरिया, पश्चाताप
दिखने लगा अपमान, भय, घृणा
चश्मे की दुकाने बढ़ने लगी
आँखों में आंखे डालकर बातें कम होने लगी
आंखे बता देती हैं जो दिल का हाल
इतने मशगूल हो जाते है दुनियाभर के समझौतों में
हम देखना नहीं चाहते है, बातें आगे बढ़ाना नहीं चाहते हैं
फुर्सत नहीं रहती किसीका हाल जानने की
आँखों में आँखे डालकर बातें करने वाले भूलते जाते हैं
आँखों में आँखे डालकर बातें करना
चश्मे की दुकाने बढ़ रही है