घोड़े पर सवार एक कंकाल
भागता चला आ रहा है
युग युग से
मंज़िल तक पहुँचता है
मंज़िल आगे बढ़ जाती है
हांफ गया है
आसमान को छूने की कोशिश ने
कंकाल बना दिया
तो क्या करे, न हांफे
तो आसमान कैसे छुएगा
आसमान छूने की कोशिश ने
हर युग में कंकाल बनाये हैं
घोड़े की आवश्यकता हर युग को पड़ी है
कंगाली की हद पार करने के लिए
न पार कर पाएंगे कंगाली की हद
न अंत होगा कंकाल बनने का क्रम
न छोड़ेंगे समय को पकड़ने की कोशिश
न कभी टूटेगा प्रगति का क्रम