अकेले कमरे में बैठकर
एक स्वर्ग रचने की कल्पना की थी उसने
मिलजुल कर स्वर्ग बनाने के लिए उसे कुछ साथी मिले
कब वो उनका ईश्वर बन बैठा, पता न चला
सब मिलजुलकर स्वर्ग बना रहे थे
आनेवाले तूफान का अंदेशा न रहा किसीको
जिस दिन आंधी आई, उड़ाकर ले गयी सबकुछ
ईश्वर था, माई बाप था, और न जाने क्या क्या था
ईश्वर, ईश्वर न रहा, सब कुछ बिखर गया
जिस ईश्वर को बनते वर्षों लगे थे
एक झटके में दानव बन गया
ईश्वर ने बहुत कोशिश की
फिर से ईश्वर बनने की, सारी कोशिशें बेकार गयी
साथियों ने कहा, काहे का ईश्वर, जब आंधी रोक नहीं सकता
उस दिन, अकेले कमरे में बैठकर, फिर से, ईश्वर को लगा
ईश्वर बने रहने के लिए , ईश्वर को भी मूल्य चुकाना पड़ता है