कल्पना की पीठ पर चढ़कर
वर्षों की दूरी तयकर
पहुंचा बचपन से मिलने
बचपन न मिला
न मिली ममतामयी आंखें
न मिले वो पदचिन्ह, जिनने चलना सिखाया
न मिली कहानी सुनानेवाली पीढ़ी
न मिला खेल का मैदान, जहाँ नंगे पैरों खेला करते थे
मिला सत्य, नये स्वरुप में
मिला रैन बसेरा, नया जामा ओढ़े
इतिहास भूलकर खड़ा था
कहाँ जाऊं अब इतिहास ढूढ़ने
सत्य पास ही खड़ा था, उसने समझाया
छोटे छोटे लम्हों को संजोकर मैंने ही रखा है
इतिहास की धूल से बचाकर
समय से परे होते हैं कुछ इतिहास